कसेरूआ खेरा में पहली बार मिले इंसानी अंगुली के छाप, महाभारत काल से है संबंध, ASI ने कहा- दुर्लभ खोज
कसेरूआ खेरा में उत्खनन का नेतृत्व कर रहे अधीक्षण पुरातत्वविद् गुंजन कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि उन्हें यहां करीब 25 टुकड़ों पर अंगुली के छाप मिले हैं। कुछ पर एक से ज्यादा यानी कुल मिलाकर 30-35 अंगुली के छाप मिल चुके हैं। पढ़ें अनामिका सिंह की रिपोर्ट।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के उत्खनन विभाग को पलवल जिले के कसेरूआ खेरा में पुरातात्विक उत्खनन के दूसरे चरण के दौरान चित्रित धूसर मृदभांड (पीजीडब्लू) पर अंगुली के छाप (फिंगर प्रिंट) मिले हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब एएसआइ को 30 के लगभग अंगुली के छाप एक ही उत्खनन स्थल से प्राप्त हुए हैं। इसके साथ ही पीजीडब्लू पर श्वेत रंग में कमल के फूल की आकृति भी मिली है।
अभी तक जितने भी हड़प्पा पीजीडब्लू से संबंधित स्थलों पर उत्खनन किया गया है, वहां श्वेत की जगह काले रंग से ज्यामितीय आकृति बनाए जाने का प्रमाण मिला है। एएसआइ का कहना है कि यहां मिले पुरातात्विक अवशेष तकरीबन 3000 साल पुराने हैं यानी ये महाभारत काल के समकालीन हैं।
कसेरूआ खेरा में उत्खनन का नेतृत्व कर रहे अधीक्षण पुरातत्वविद् गुंजन कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि उन्हें यहां करीब 25 टुकड़ों पर अंगुली के छाप मिले हैं। कुछ पर एक से ज्यादा यानी कुल मिलाकर 30-35 अंगुली के छाप मिल चुके हैं। वहीं सिर्फ एक लाल मृदुभांड पर भी अंगुली के निशान प्राप्त हुए हैं। जिन्हें शारदा विश्वविद्यालय के फोरेंसिक साइंस विभाग से अध्ययन करवाया जा रहा है।
इसमें शारदा विश्वविद्यालय का इतिहास विभाग व फोरेंसिक विभाग दोनों सहयोग कर रहे हैं। इसके अलावा यहां पीजीडब्लू पर कमल, जानवर व ‘आइ गोडेस’ की आकृति मिली है। यहां मिले पीजीडब्लू की कुल जमाव मोटाई 3.60 मीटर से ज्यादा है जोकि दुर्लभ है। ज्यादातर प्राप्त पीजीडब्लू स्थलों से आधे से एक मीटर के साक्ष्य मिले हैं।