Blog: तस्करों के चंगुल में बच्चों को ढकेलता है स्वास्थ्य विभाग, 90 फीसदी अंतरराज्यीय होती है तस्करी
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि हर वर्ष तस्कर दुनिया भर में लगभग तीन लाख बच्चों को गुलामी के लिए बेच देते हैं। मानव तस्करी विरोधी एक संगठन के अध्ययन में बताया गया है कि गरीबी और अशिक्षा के चलते इस तस्करी का संजाल मजबूत हो रहा है। पढ़ें जयप्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट-
यह एक दर्दनाक सच्चाई है कि पूरे विश्व में तस्करों के गिरोह लाखों नौनिहालों का बचपन छीन रहे हैं। इस समय विश्व में बच्चों की तस्करी का अवैध कारोबार डेढ़ सौ अरब डालर वार्षिक से अधिक का हो चुका है। भारत के कई राज्यों में भूमिगत शिशु तस्कर गिरोह सक्रिय हैं, जो माता-पिता की गरीबी का फायदा उठाते हैं। सरकारी अस्पतालों में ढीली सुरक्षा व्यवस्था के कारण हर वर्ष हजारों नवजात शिशु तस्करों के हवाले कर दिए जाते हैं। इसमें चिकित्सा क्षेत्र के चतुर्थ श्रेणी कर्मियों को बड़ी संख्या में शामिल पाया गया है।
आमतौर पर नशीली दवाओं के धंधे में शामिल तस्कर गिरोह बड़ी खूबसूरती से माता-पिता को यह विश्वास दिलाते हैं कि वे उनके बच्चे का भविष्य बेहतर बना सकते हैं। तस्करी के शिकार बच्चों की पहचान करना कठिन होता है, क्योंकि उन्हें जानबूझकर उन सेवाओं और समुदायों से छिपाया और अलग-थलग रखा जाता है, जो उन्हें पहचान कर उनकी सुरक्षा कर सकते हैं। तस्करों के अंतरराष्ट्रीय संजाल में छोटे से छोटे क्षेत्र भी चिह्नित होने लगे हैं, जहां उनके मुखबिर किस्म के एजेंट अनाथालयों, बाल सुरक्षा गृहों, अस्पतालों आदि में सक्रिय रहते हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि हर वर्ष तस्कर दुनिया भर में लगभग तीन लाख बच्चों को गुलामी के लिए बेच देते हैं। मानव तस्करी विरोधी एक संगठन के अध्ययन में बताया गया है कि गरीबी और अशिक्षा के चलते इस तस्करी का संजाल मजबूत हो रहा है। इससे निपटने के लिए अब व्यापक सुरक्षा, रोकथाम, कानून प्रवर्तन और पीड़ितों की त्वरित सहायता बहुत जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार संरक्षण, खासकर बच्चों की तस्करी को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र में ‘पलेर्मो प्रोटोकाल’ सूचीबद्ध है। इसके साथ ही कई अन्य अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय एजेंसियां भी संयुक्त कार्रवाई के तहत इस आपराधिक संजाल की चुनौतियों से निपटने में लगी हुई हैं।
दुनिया में बाल तस्करी की मुख्य वजह गरीबी